मृत्यु योग में महाप्रज्ञ जी के दर्शन करने का काल वाक्य हो गया था सत्य। आचार्य महाप्रज्ञ के 16 महाप्रयाण दिवस पर स्मृति शेष।
2009 का चतुर्थ मार्ग उड़ीसा प्रदेश कांटा बाजी क्षेत्र में परिसन्न करने के पश्चात मेरे चरण छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर होते हुए महाराष्ट्र की धारा पर आगे बढ़ते हैं। मेरा अगला लक्ष्य था आचार्य महाप्रज्ञ के चरणों में प्रस्तुत होना।
अनेकों प्रकार की समस्याएं मेरे सामने आती है। बाहर की समस्याएं भी आती है, तो साथ में भीतर की भी समस्या आती है। बाहर की समस्या का तो व्यक्ति मुकाबला कर लेता है पर भीतर की जो समस्या होती है उससे मुकाबला करना बहुत ही मुश्किल काम होता है।
उस समय मेरा एकांतर तप चल रहा था। पालने के दिन मैंने अन्न ग्रहण करना बंद कर दिया था। इस बात को लेकर बहुत सारी अफवाहें उड़नी प्रारंभ हो जाती है। कान भरने वाले लोगों की दुनिया में कोई कमी नहीं है। आचार्य महाप्रज्ञ तक यह संवाद पहुंचाया जाता है। मेरे साथी संत थे उनका भी उसके अंदर बहुत बड़ा योगदान था।
मेरे पास में संवाद आता है, बिना अंक भजन तुम्हारे लिए बनाया जाता है यह कैसे ग्रहण किया जा सकता है। तुम अन्न ग्रहण प्रारंभ कर दो, रायपुर में यह संवाद मेरे पास में आता है। तुम कब तक सरदारशहर पहुंचोगे। हमारे को लिखित में जानकारी दो, वरना तुम्हारे साथी संतों को मैं सरदारशहर बुला सकता हूं।
यह संवाद जब रायपुर पहुंचता है। रायपुर समाज के अंदर इस संवाद को लेकर बहुत ज्यादा उत्तेजना का भाव जागृत होना प्रारंभ हो जाता है। मेरे पास में वहां की अध्यक्ष और सारे लोग मिलकर आते हैं, यह क्या आदेश है।
मैंने कहां, कोई बड़ी बात नहीं है, अपने ही लोगों का काम है वह काम अपना करते रहेंगे, अपने को अपना काम करते ही रहना है। मेरे साथी ने पूछा कि क्या आज भोजन के लिए आपके लिए अन्न लेकर आ जाऊं।
मैंने कहां, नहीं, बिल्कुल भी नहीं। मैं अपने आधार पर पारना कर रहा हूं। अगले दिन उपवास कर सकता हूं, केवल जो सब्जी बनी हुई है वह तुम लेकर आ जाओ, उस सब्जी से अपना काम चला लूंगा।
यह बात सुनकर लोगों ने कहां कि ऐसे उल्टे-सुलटे समाचार देने वाला श्रावक कौन है। आप हमें नाम बताओ हम उस श्रावक पर कार्रवाई करेंगे।
मैंने समझाया अपने को कुछ भी नहीं करना है आराम से अपने को आगे से आगे बढ़ना है।
2010 1 जनवरी का दिवस आता है वह हमने दुर्ग भिलाई में मनाना निश्चित कर दिया था। इसके लिए पोरवाल जी का विशेष आग्रह था। प्रेक्षा ध्यान केंद्र बनाया है। नया वर्ष इस प्रांगण के अंदर मनाया जाएगा।
President of India Dr. APJ Abdul Kalam Rewards Acharya Mahapragy
वह प्रोग्राम भी बहुत अच्छा रहा था। हजारों हजारों भक्त लोग वहां पर उपस्थित थे। पर मेरे साथी इतने बड़े प्रोग्राम को देखकर मन में और ज्यादा जलन रखने प्रारंभ कर देते है। श्रावक समाज को भी उल्टा सीधा भड़काना प्रारंभ कर देते हैं।
महाराष्ट्र की सीमा पार करके राजस्थान बकानी में प्रवेश हो जाता है उस समय मेरे को आचार्य महाप्रज्ञा जी का एक संदेश प्राप्त होता है। भयानक गर्मी का मौसम है। इस मौसम में पैदल चलना बहुत मुश्किल काम है। तुम चाहो तो तुम्हारा चातुर्मास इंदौर करवा सकते हैं या यहां तुम चाहो वहां पर चतुर्मास करवाया जा सकता है। एक बार तुम अवश्य ही चिंतन करने का प्रयास करो।
मैं उड़ीसा के चिंतनशील श्रावकों से चिंतन मंथन करना प्रारंभ किया। उसके पश्चात मैंने स्पष्ट रूप से अपना निश्चय बता दिया कि गर्मी चाहें कितनी ही भयानक क्यों नहीं हो, मैंने अपने मन में निश्चय कर लिया है कि एक बार आपके चरणों में पहुंच कर ही रहूंगा। अगले ही क्षण आप यदि मेरे को हजार किलोमीटर दूर भी बिहार करने का आदेश देंगे तो मैं तैयार रहूंगा, पर मैं अभी बीच में कहीं पर भी रुकने वाला नहीं हूं। साथी संत तेज चलकर पहले आपके पास पहुंचना चाहते हैं तो पहुंच सकते हैं मैं अपनी गति से ही चल कर आऊंगा।
मेरा यह संवाद जब आचार्य महाप्रज्ञ के चरणों में पहुंचता हैं। आचार्य महाप्रज्ञ जी ने महा श्रमणि साध्वीं प्रमुख कनक पूर्वजी के सामने वह पत्र प्रस्तुत किया। इस समय मेरे मित्र मुनी धनंजय कुमार जी पहुंच गए थे आचार्य महाप्रज्ञ ने उनको कहा, देखो तुम्हारे मित्र का पत्र आया है उन्होंने क्या लिखा है! इतनी भयानक गर्मी में भी अकेले आने के लिए तैयार है।
Aacharya Mahapragy discusses with Vice president of India Bharo Singh Shekhawat
मुनि धनंजय कुमार जी ने निवेदन किया कि गुरुदेव मुनी भूपेंद्र कुमार जी जो अपने मन में सोच लेते है वह कार्य पूरा करके ही रुकते है, चाहे कुछ भी हो जाए। इसके लिए उनको अपने जीवन का बलिदान भी करना पड़े तो वह बलिदान करने के लिए तैयार रहते हैं।
तब अब क्या किया जाए। वे रुकने का वह नाम नहीं ले रहे है और साथ ही संत को भी अकेले भेजने के लिए तैयार है। साध्वी प्रमुखा ने निवेदन किया कि अपने को साथी संतों को अकेला नहीं बुलाना चाहिए कुछ भी हो जाए। जैसा मुनि भूपेंद्र कुमार जी चाहते हैं वैसा ही उनको बुलाना है।
आचार्य महाप्रज्ञ का संदेश आता है। “गर्मी का ख्याल रखते हुए जिस तरह से तुम आना चाहते हो आराम से आने का प्रयास करना। तुम्हारा साथी संत तुम्हारे साथ ही आएगा और जैसा तुम चाहोगे वैसा हो जाएगा।”
उड़ीसा के श्रावक डॉक्टर और उनकी धर्मपत्नी मेंम वाई दोनों ने कहा कि आप निश्चिंत रहें हम आपके रास्ते में कहीं पर भी छोड़ कर जाने वाले नहीं है, चाहे कुछ भी हो जाए। सरदारशहर पहुंच कर हम वापस उड़ीसा जाएंगे। पर आप अपने साथी संतों का ध्यान रखना।
मैंने उनके संकेत को समझ लिया था। अगले ही दिन जो हमारे साथ में काशिद चल रहा था उसके साथ में झगड़ा करके उसको वहां से भगा देती है। मेरे साथी संत अब क्या किया जाए समस्या आ जाती है। तब डॉक्टर साहब ने कहा कि आपको घबराने की जरूरत नहीं है, मैं आपका काशिद बनाकर साइकिल पर आपके साथ में पैदल चलूंगा। इतनी भयानक गर्मी में बलिदान करना यह भी बहुत बड़ी बात है।
मैम वाई ने कहा कि ड्राइवर अच्छा है। आगे की व्यवस्था में अपने आप संभाल लुंगी। आप निश्चिंत रहे कोई भी आपको तकलीफ नहीं होगी।
नये काशिद की व्यवस्था क्या हो सकती है, यह में चिंतन करना प्रारंभ कर देता हूं। इस समय मेरे को बोरावड़ का भक्त गजेंद्र बोथरा याद आ जाता है। डॉक्टर साहब ने उनसे संवाद स्थापित किया। सारी परिस्थितियों का निचोड़ सामने रखा। गजेंद्र का संवाद आता है, “मुनिश्री को मेरी वंदना आर्च करना और निवेदन करना कि किसी प्रकार की रास्ते की सेवा में कमी नहीं रहेगी। मैं स्वयं अपने साथ में काशिद लेकर आ रहा हूं।” जैसा उसने कहा, वैसा करके भी दिखला दिया।
भयंकर गर्मी में हम आगे से आगे बढ़ते ही जा रहे थे। सरदारशहर निकट से निकटतम आता जा रहा था। सभी संत वहां पर हमारा इंतजार कर रहे थे। मुनी जम्मू कुमार जी का संवाद आता है कि कौन सी तारीख को कौन से मुहूर्त में दर्शन करोगे।
मैंने मजाक में लिख दिया कि मृत्यु योग के अंदर दर्शन करने के विचार हैं। यह संवाद पढ़कर वे भी मुस्कुराना प्रारंभ कर देते हैं। मृत्यु योग में भी कोई दर्शन किए जाते है क्या।
भयंकर गर्मी का मौसम में सुबह 10:30 बजे हम सरदार शहर पहुंचते हैं। बहुत सारे संत अगवानी के लिए भी आते हैं। गधाईया जी के नोहरे में होते हुए गोठी जी की हवेली में पहुंचते हैं।
आचार्य महाप्रज्ञ के पावन दर्शन करते हैं। भयंकर गर्मी के कारण मेरा शरीर बिल्कुल काला नजर आना प्रारंभ हो गया था। एक बार तो आचार्य महाप्रज्ञ तो क्या, साध्वी प्रमुख कनक प्रभा जी भी हमारे को नहीं पहचान पाती है।
दर्शन करते हैं आचार्य महाप्रज्ञा का व्रत हस्त मेरे मस्तक पर आता है। मेरे रास्ते की सारी गर्मी और थकावट थी वह अपने आप ही दूर हो जाती है। गुरुदेव ने कहा, “देखो कितनी हिम्मत की है, इतनी भयंकर गर्मी में आए है। हमने इनको रोकने का भी प्रयास किया पर यह रुकने का कहीं पर नाम भी नहीं लिया और किस आस्था श्रद्धा के बल परिणाम पर पहुंच गए है।”
दिन पूरा होता है। शाम के समय आचार्य महाप्रज्ञ जी से बातचीत करने का अवसर प्राप्त होता है। कहा कल तो हम व्यस्त रहेंगे परसों शाम को सारी बातचीत करनी है। इतना कहकर मेरे मस्तक पर हाथ रखा। उठकर मैं बाहर आ जाता हूं, इंतजार करता हूं तीसरे दिन का।
2 दिन पूरे हो जाते हैं। आज का दिन आता है, एकादशी दोपहर के समय सभी संत आराम से भोजन कर रहे थे अचानक एक संत आते हैं और चिल्लाते हैं जल्दी करो – जल्दी करो – जल्दी करो। सबको आश्चर्य होता है। क्या बात है, क्या हो गया, सभी संत अपना भोजन छोड़कर गोठी जी की हवेली की तरफ रवाना हो जाते हैं।
डॉक्टरों का आवागमन प्रारंभ हो जाता है। बिहार से आए हुए एक ज्योतिषी ने पहले बता दिया था आज के दिन इतने बजे कुछ भी हो सकता है। वह कार्य इस समय संपन्न होता है। फिर भी ज्योतिषी ने कहा था कि हो सकता है वापस प्राण आ जाए, इसके लिए सभी इंतजार करना प्रारंभ कर देते हैं। मैं भी वहां पर पहुंच जाता हूं। उस समय डॉक्टर साहब मेरे पास में आते हैं, पूछते हैं, क्या हाल-चाल है।
मैंने कहा कि तुम उड़ीसा अच्छी तरह से संवाद प्रदान कर दो कि आचार्य महाप्रज्ञ संसार में नहीं रहे हैं। उन्होंने इस समय उड़ीसा सभा के अध्यक्ष को फोन लगाय। उड़ीसा में प्रवेश करने वाले सिंघाड़े का ओडिशा सीमा में प्रवेश था। सभी लोग वहां पर आए हुए थे। जब यह संवाद वहां पर पहुंचता है, सन्नाटा छा जाता है। कार्यक्रम भी रद्द कर दिया जाता है।
जब कोई आशा की किरण नजर नहीं आती है। तब बीकानेर से डॉक्टर साहब आते हैं। देखते हैं और कागज पर लिखकर चले जाते हैं। आचार्य महाप्रज्ञ जी अब संसार में नहीं रहे। चारों तरफ यह सूचना फैल जाती है। यो लगता है कि दोपहर के 2:00 बजे सरदार शहर में मानव सूर्य है वह अस्त हो गया है। मुनी जम्मू कुमार जी ने व्यंग करते हुए कहा, “जो आपने लिखा था, मृत्यु योग में दर्शन करूंगा तो आज तुम्हारी लिखी हुई बात है वह सही साबित हो गई है।”
आचार्य महाप्रज्ञ के हाथों से सबसे पहले अग्रगण्य बनने वाला मैं ही था, तो सबसे अंतिम दर्शन करने वाला भी मैं ही बना। आज हम उनका 16 वां स्मृति दिवस मना रहे हैं। तो मुझे आचार्य महाप्रज्ञ के जीवन की एक-एक घटना अपने आप की स्मृति पटल पर उतरती हुई नजर आनी प्रारंभ हो जाती है। मेरे साथ की बहुत सारी घटनाएं आचार्य महाप्रज्ञ जी के साथ जुड़ी हुई है। समय-समय पर उन घटनाओं को भी मैं प्रस्तुत करने का प्रयास करूंगा। आचार्य महा प्रज्ञा मानवता के महा पुजारी थे।