
फेफड़ों का कैंसर दुनिया भर में कैंसर से संबंधित मौतों के प्रमुख कारणों में से एक है। भारत में, फेफड़ों के कैंसर के कारण सभी कैंसरो में 5.9% और सभी कैंसर से संबधित मौतों में 8.1% मौते होती है।
फेफड़ों के कैंसर को 2 प्रकारो में वर्गीगृत किया जा सकता है, अर्थात छोटे सेल फेफड़ों का कैंसर (SCLC) और गैर- छोटे सेल फेफड़ो का कैंसर (NSCLC) SCLC के रोगियों में आमतौर पर श्वसन संबंधी लक्षण होते है, जिसमे खांसी, सांस लेने में कठिनाई (डिस्पनिया ) या खून की खांसी शामिल है।
फेफड़ों के कैंसर की जांच करने में मदद करने वाले कई परीक्षण है जिनमे रक्त परिक्षण, इमेजिंग परीक्षण, आनुवंशिक परीक्षण शामिल है। इमेजिंग परीक्षणों में एक्स-रे और सिटी स्कैन शामिल है।
यूएस नेशनल लंग स्क्रीनिंग ट्रायल (NLST) ने छाती के एक्स-रे की तुलना में उच्च जोखिम वाली आबादी में वार्षिक काम खुराक वाली कम्यूटेड टोमोग्राफी (LDCT) के साथ फेफड़ो के कैंसर से होने वाली मौतों में 20 % की कमी दिखाई। यूएस प्रिवेंटिव टास्क फ़ोर्स (USPSTF) ने 50-80 वर्ष की आयु के उन लोगों के लिए काम खुराक वाली कम्यूटेड टोमोग्राफी (LDCT) के साथ वार्षिक स्क्रीनिंग की सिफारिश की है। जिनका 20 पैक-वर्ष का धम्रपान इतिहास है और जो वर्तमान में धूम्रपान करते है या पिछले 15 वर्षो में धूम्रपान करते रहे है।
फेफड़ों के कैंसर की जांच फेफड़ो के कैंसर का जल्दी पता लगाने के माध्यम से फेफड़ो क कैंसर से संबधित मौतों की संख्या को काम कर सकती है। तीन वर्षो तक साल में एक बार LDCT के साथ जांच प्रारम्भिक चरण के फेफड़ो के कैंसर का पता लगाने में छाती के एक्स-रे से बेहतर साबित हुई है और वर्तमान और पूर्व भारी धूम्रपान करने वालो में फेफड़ो के कैंसर से मरने के जोखिम को भी काम किया है।
कई श्वास नियंत्रण अभ्यास है जो फेफड़ों के कैंसर में फेफड़ों की क्षमता को बेहतर बनाने में मदद कर सकते है। आराम से सांस लेने से तनाव और चिंता को कम करने में मदद मिल सकती है जबकि डायफ्रामिक सांस लेने से डायाफ्राम और पेट की मांसपेशियों को मजबूती मिलती है। पसड़-लिप ब्रीदिंग पेट की मांसपेशियों को मजबूत करने में मदद करती है, और सांस लेने में भी मदद करती है, खासकर किसी गतिविधि के दौरान।