
बेंगलुरु में घने, ऊंचे पेड़ो वाले गन्ने और मक्के के खेत जानवरों, खासकर बड़ी बिल्लियों यानि तेंदुओं के छिपने के लिए आदर्श आश्रय स्थल बने हुए है। इन खेतों में मवेशी जैसे भेड़, आवारा कुत्ते, जंगली सूअर आदि शिकार पर्याप्त मात्रा में पाए भी जाते है।
इसके अलावा, ये खेत तेंदुओं के प्रजनन के लिए पानी और सुरक्षित जगह भी प्रदान करते है। 2023 – 24 के आंकड़ों के अनुसार, कर्नाटक में गन्ना उगाने वाला क्षेत्र 10 लाख हेक्टेयर हो गया जो 2019 – 20 में महज 7.65 लाख हेक्टेयर ही था और, पिछले चार वर्षों के दौरान मक्के का खेत भी 15 लाख हेक्टेयर से बढ़कर 20.13 लाख हेक्टेयर हो गया है।
हालांकि, इसमें उत्तर कर्नाटक के इन क्षेत्रों में पशु – मानव मुठभेड़ बढ़ गयी है। आवास का नुकसान, खनन और घटते शिकार तेंदुओं जैसे इन जानवरों को नए क्षेत्रों में जाने के लिए मजबूर करने वाले प्रमुख कारक है। समय के साथ तेंदुओं की आबादी बढ़ती जा रही है और इसी कर्म में कोप्पल में 2022 से तेंदुओं की बढ़ती आबादी के कारण 57 पशुधन की मौत हो गयी।
कर्नाटक वन विभाग के आंकड़ों से पता चलता है की कलबुर्गी, बेलगावी, बीदर और बागलकोट जिलों में पशुधन की हत्या के साथ कुल 82 मानव तेंदुओं संघर्ष की घटनाएँ हुई है। इसी तरह बागलकोट के यादहल्ली चिंकारा वन्यजीव अभयारण्य में जहां पहली बार 2015 में तेंदुए देखे गए थे, और वर्तमान में यादहल्ली और उसके आसपास 3 वयस्क तेंदुए है।
वन अधिकारियो को संदेह है की इन तेंदुए ने कृष्ण नदी बेसिन में गन्ने के खेतों का इस्तेमाल किया और यादहल्ली में चले गए। इसी तरह पिछले तीन वर्षो में, विजयपुरा जिले के गन्ने के खेतों में छह तेंदुए देखे गए है, जहाँ पहले तेंदुए के देखे जाने का शायद ही कोई रिकॉर्ड हो। तेंदुए अन्य बस्तियों से आते है और गन्ने की सूखे खेतों में शरण लेते है यह परिदर्शय मादा तेंदुओं के प्रजनन के लिए उपयुक्त हो जाता है। गन्ने और मक्के के खेतों से तेंदुए के बच्चो को बचाना उत्तरी कर्नाटक में एक नियमित अभ्यास बन गया है। ( आलेख – साभार, राष्ट्रदूत )