
नीना कमल रांका फाउंडेशन और पंडित टोडरमल स्मारक ट्रस्ट की ओर से जयपुर में ‘जैन दर्शन में कर्म सिद्धांत’ पर सारगर्भित राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। हरि सिंह रांका की स्मृति में आयोजित की गई इस संगोष्ठी में देशभर के जाने माने सुधिजनों ने अपने तथ्यपरक वक्तव्य दिए।
जयपुर के बापूनगर स्थित टोडरमल स्मारक भवन में आयोजित हुए इस संगोष्ठी कार्यक्रम के मुख्य अतिथि आई ए एस कुलदीप रांका ने कहा कि जैन दर्शन आत्मशुद्धि और जीवन अनुशासन का सटीक मार्ग है। संगोष्ठी के विशिष्ठ अतिथि नीना कमल रांका फाउंडेशन के ट्रस्टी नीना कमल रांका ने इसे समाज सुधार के लिए एक प्रभावी पहल बताया।
संगोष्ठी की अध्यक्षता श्री टोडरमल दिगम्बर जैन सिद्धांत महाविद्यालय, जयपुर के प्राचार्य डॉ. शांतिकुमार पाटिल ने की। जैन दर्शन की व्यावहारिक व्याख्या पर केंद्रित संगोष्ठी के मुख्य वक्ता लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय के जैन दर्शन विभाग के विभागाध्यक्ष प्रोफेसर वीर सागर जैन ने कर्म सिद्धांत की वैज्ञानिकता और दार्शनिक महत्व पर व्याख्यान दिया।
संगोष्ठी के संचालक नई दिल्ली के डॉ. ऋषभ जैन ने कर्म नाश के उपायों का विश्लेषण किया। इंदौर के पंडित विकास छाबड़ा ने पुण्य और पाप कर्मों के स्वरूप, मेरठ के प्रोफेसर डॉ. मनीष कुमार जैन ने कर्म के पूर्व बंध और उनके कारणों, नागपुर के डॉ. प्रतीति मोदी ने पुण्य और पाप के एकत्व – अनेकत्व पर तथ्यात्मक व्याख्यान दिए नागपुर के शास्त्री संयम जैन ने जैन दर्शन की अन्य भारतीय दर्शन से तुलना की।
संगोष्ठी में उपस्थित विद्वानों ने सहमति जताई कि कर्म सिद्धांत केवल धार्मिक नहीं, बल्कि सामाजिक और व्यावहारिक दृष्टिकोण से भी अत्यंत प्रासंगिक है। कार्यक्रम के समापन पर आयोजकों ने सभी अतिथियों और श्रोताओं का आभार व्यक्त किया। आयोजकों ने बताया कि इस आयोजन ने नई पीढ़ी को जैन दर्शन के गूढ़ सिद्धांतों से जोड़ने और समाज सुधार की दिशा में प्रेरित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।